भजन
मुझको दर्पण ऐसा दे दो ना,
जिसमें तेरी तस्वीर दिखे,
सोते-जगते इन अँखियों को,
मुझको तू रघुबीर दिखे!
सात जन्म का पापी हूँ,
इस जन्म भी पाप कमाया है,
नाम तेरा तारे दुनिया से,
समझ देर से आया है,
कुछ ऐसा प्रभुजी कर देना,
तेरे दर पर मेरा नीड़ बने !
जन्म बड़ा अनमोल प्रभु था,
मैंने बेकार गवाँया है,
विषयों में फँस करके मैंने,
अपना मान घटाया है,
हाथ शीश पर रख दो ना,
थोड़ी तो तकदीर बने !
काम, क्रोध, मोह, लोभ सभी ने,
इन्द्रजाल बनाया था,
मेरी परीक्षा लेने को क्या,
तूने जाल बिछाया था,
पा चुका बहुत सजा हूँ दाता,
कोई अब तदबीर बने !
2 Comments:
अच्छा किया डॉ साहिब. रघुबीर को भूले बेठे थे, आपने याद दिला दी. सारी दिकाताओं को वो ही ठीक करेंगे . धन्यवाद्.
achha kiya, raam ji yaad dila kar. plz post this mail to mr. l.k. adwaani.
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