"भजन एवँ भेंट"
बंद अँखियों में दर्शन श्याम के हों,
ऐसी मेरी तकदीर कहाँ,
भक्ति मुझको भरपूर मिले,
मुझपे ऐसी तदबीर कहाँ ?
मेरी साँस-साँस में आस छुपी,
तेरे दर्शन की प्यास छुपी,
जो भा जाये इन अंखियों को,
कोई ऐसी तस्वीर कहाँ ?
दुनिया को मैं तो भूल चुका,
तेरे दर पे हूँ कब से खड़ा,
मोह-माया में मुझको जकड़े,
ऐसी कोई जंजीर कहाँ ?
तू दूर रहे या पास रहे,
सबके मन का विश्वास रहे,
तू भा जाये सबके मन को,
तुझसा कोई रघुबीर कहाँ?
(2)
ले चल वे, मैंनु ले चल वे,
मैंनु माँ दे दर ते ले चल वे!
तेरा मनुहार मैं करनी आँ,
माता नाल प्यार मैं करनी आँ,
गल मन जा मेरी बीबा वे,
नई ते कल्ली मैं चलनी आँ,
ले चल वे, मैंनु ले चल वे…
सुत्ती आँ भावें जागी आँ,
मैं माँ दे रंग विच रंगी आँ,
रोंदी आँ भाँवे हँसदी आँ,
मैं सब दे नालों चंगी आँ,
ले चल वे मैंनु ले चल वे…
कोई ना मेरी इच्छया ऐ,
माता ने मैंनु सदया ऐ,
माता दे दर्शन हो जावन,
ताई तो जी मेरा करया ऐ,
ले चल वे, मैंनु ले चल वे…
(3)
लब्बी ऐ, लब्बी ऐ सानु माँ दी डगरिया,
बन्नी ऐ, बन्नी ऐ अस्सी सिर ते चुनरिया,
बन्न के चुनरिया, चढ़ के डगरिया,
चलो चलिये चलो माँ दी नगरिया ।
जोत जलावाँ, माँ नू मनावाँ,
रोज़-रोज़ नया चोला चढ़ावाँ,
चूड़ी पहनावाँ, बिन्दी लगावाँ,
सदराँ दे नाल मैं माँ नूँ सजावाँ,
फेर लगावाँ काला मैं टिक्का,
लग न जाये मेरी माँ नूँ नज़रिया,
चलो चलिय चलो…
भवना ते जाके शीश नवाईये,
सुता होया पीला शेर जगाईये,
रुसी होई माँ नूँ ऐथे बुलाईये,
कीते होये सारे पाप धुलाईये,
पावाँ जो तेरा साथ महारानी,
नच-नच धुमाँ मैं बीच बज़रिया,
चलो चलिये चलो…
(4)
ना पुछो मैंनु आ के, मैं माँ दे दर ते जाके,
की खटया, की खटया, की खटया,
मैं सब कुछ खटया, सब खटया, सब खटया ।
माँ दा दरबार है उचा, जाओ मन करके सुच्चा,
झूठी श्रद्धा दे नाल, नई कुछ मिलया, नई मिलया, नई मिलया ।
माता दे दर्शन पाओ, नैना दे विच समाओ,
सोनी मूरत नू देख के, दिल ना रजया, ना रजया, ना रजया ।
मोह सब दे नाल छुड़ाईये, माता दा नाम धयाईये,
भव पार उतारन, पीला शेर है चलया, हाँ चलया, हाँ चलया ।
सूहा चोला पहना के, सोने जये फुल चढ़ा के,
मैं रोज़-रोज़ माता दे दर ते नचया, हाँ नचया, हाँ नचया ।
(5)
जी करदा ऐ माँ दे दरबार चले जाईये,
दो छलांगा मार के पहाड़ चढ़ जाईये ।
पहले आंदा है जम्मू दा शहर मेरी माँ,
बान गंगा ते करके स्नान मेरी माँ,
फिर चढ़ के चढ़ाईयाँ पहाड़ चढ़ जाईये ।
अधकवारी पहुंच के मनावा मेरी माँ,
करन दर्शन नूँ बुलावां मेरी माँ,
दौड़ के चढ़ाईयाँ पहाड़ चढ़ जाईये ।
सांझी छत ते आके पुकारा मेरी माँ,
तेरे भजना नूँ सवाँरा मेरी माँ,
फेर नस के तेरे दरबार चले जाईये ।
तेरे भवना ते शीश नवावाँ मेरी माँ,
बंद अँखियाँ च दर्शन मैं पावाँ मेरी माँ,
मिले दर्शन ते शवास छोड़ जाईये ।
1 Comments:
bबहुत खूबसुरत कविताएं..पढ़ कर बहुत अच्छा लगा. यदि आप background का रंग काला हटा दें तो पढ़ने में आसानी हो...
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