बच्चों का कोना
(1)
काली मक्खी, काली मक्खी,
तूने क्यों मेरी टाफी चखी,
तेरे पर जो काटूँ रानी,
याद आयेगी तुझको नानी,
भूल जायेगी घर का रस्ता,
नहीं पड़ेगा सौदा सस्ता,
इसलिये मेरी बात ये मानो,
दूजे की चीज पर नजर न डालो ।
(2)
छोटे-छोटे हम हैं बच्चे,
मत समझो हमें अक्ल के कच्चे,
हम अलबेले, नहीं अकेले,
बात-बात पर लड़ करके भी,
साथ रहें हम, सब साथ चलें,
देश में फूट पड़ाने वालो,
घर के टुकड़े बंटाने वालो,
अपनी अक्ल न काम करे तो,
बच्चों से कुछ अक्ल जुटा लो ।
(3)
रिम-झिम, रिम-झिम पानी बरसा,
मेंढ़क नहीं पानी को तरसा,
टर्र, टर्र, टर्र, टर्र, शोर मचाये,
उछले-कूदे नाच दिखाये,
ठंड बड़ी मुशिकल से काटी,
गर्मी नहीं है साथ निभाती,
पानी की बौछार जो आई,
खिल गया मन, पा मन भाता साथी ।
2 Comments:
सुंदर अभिव्यक्ति !
रवीन्द्र जी,
कविता पसन्द आने के धन्यवाद!
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