मूल्य फिर बदलेंगें !
"संस्कृति" और "मूल्य" एक दूसरे के पर्याय हैं ।
संस्कृति का तात्पर्य व्यक्ति के उन गुणों से है जिन्हे वह शिक्षा द्वारा, अपनी बुद्धि का प्रयोग करके, स्वयँ के प्रयत्नों द्वारा प्राप्त करता है । दूसरे शब्दों में संस्कृति का सम्बंध व्यक्ति की बुद्धि, स्वभाव एवं मनोवृतियों से जुड़ा रहता है । संस्कृति शब्द एक प्रशंसा-सूचक शब्द है क्योंकि उसकी व्युत्पति "संस्कृत" विशेषण से हुई है । इसलिये, संस्कृति को हम मानव के उन विशेष गुणों के समूह के रूप में भी परिभाषित कर सकते हैं जिनके द्वारा वह समाज में अपना स्थान बनाता है या स्वयं को प्रतिष्ठित करता है । यह गुण मानन की उन प्रकृति-प्रदत्त विशेषताओं से भिन्न होते हैं, जो उसके बाहरी व्यक्तित्व को प्रदर्शित करते हैं ।
समाज व्यक्तियों का समूह है । चूँकि व्यक्ति समाज में रहता है, इसलिये नित नये व्यक्ति के संसर्ग में आना अवश्यम्भावी है । एक-दूसरे के संसर्ग में आने से निश्चय ही दोनों व्यक्तियों पर एक-दूसरे के स्वभाव एवं मनोवृतियों का कुछ प्रभाव तो पड़ेगा ही । अब यहाँ व्यक्ति का अपना मौलिक स्वभाव एवं मनोवृति ही उसे किसी दूसरे व्यक्ति के अच्छे या बुरे स्वभाव एवं मनोवृति को ग्रहण करने से प्रेरित करता है या उसे रोकता है । इन सब में, वह जिस वातावरण में पला है, रहा है, जिन-जिन के संसर्ग में आया है, जैसी शिक्षा ग्रहण की है तथा उसकी अपनी मनोवृति काम करते हैं । यह उसकी इच्छा-शक्ति पर निर्भर करता है कि वह कौन सा रास्ता चुने । यह आवश्यक नहीं कि किसी बुरे व्यक्ति के संसर्ग में आने से कोई व्यक्ति उससे प्रेरणा प्राप्त कर वैसा हो ही जाये । ऐसा भी तो हो सकता है कि अच्छे व्यक्ति के संसर्ग में आने से बुरा व्यक्ति प्रेरणा प्राप्त कर अपना रास्ता छोड़ दे । और, यह भी संभव है कि दोनों ही तटस्थ रह कर अपने-अपने रास्ते बिना किसी टकराव के चलते रहें । इन्हीं तरह के कई कारणों से व्यक्तिगत मूल्य बनते-बदलते रहते हैं ।
यह तो थी व्यक्तिगत मूल्यों की बात । चूंकि समाज व्यक्तियों का समूह है, इसलिये उस समाज के व्यक्तियों के व्यक्तिगत मूल्यों का प्रभाव निश्चय ही उस समाज के मूल्यों में दृष्टिगोचर होगा । एक समाज की संस्कृति, उसके मूल्यों, की पहचान उसमें अधिकतर प्रचलित मूल्यों से ही होती है । जैसे एक व्यक्ति के स्वभाव एवं मनोवृति, जिससे उसके मूल्यों का निर्माण होता है, का कुछ प्रभाव उसके संसर्ग में आने वाले व्यक्ति पर पड़ना निश्चित है, उसी प्रकार भिन्न समाजों के आपस में संसर्ग होने से एक समाज में प्रचलित मूल्यों का प्रभाव दूसरे समाज पर पड़ेगा ही । दोनों ही समाज व्यक्तियों का समूह
हैं । एक दूसरे के संसर्ग में आने से कुछ व्यक्तियों को अपने स्वभाव अपनी मनोवृतियों के अनुसार दूसरे समाज के मूल्य अच्छे एवं अनुकूल लगेगें और वह उन्हे अपना लेगा । कुछ को नहीं और वह उन्हे नकार देगा । वह व्यक्ति निश्चित ही अपने समाज के दूसरे व्यक्तियों को अपने नये मूल्यों से प्रभावित कर उनका वर्चस्व स्थापित करना चाहेगा ताकि उसकी ऐसी सोच को सामाजिक मान्यता मिले । और नये मूल्य, चाहे वह अच्छे हैं या बुरे, सही हैं या गल्त, एक संक्रामक रोग की तरह फैलते चले जाते हैं । इसी तरह एक समाज की संस्कृति का प्रभाव दूसरे समाज की संस्कृति पर पड़ता चला जाता है ।
आज यह स्थिति है कि हरेक समाज के मूल्य बहुत जल्दी-जल्दी बदलते चले जा रहे हैं । अनेकानेक कारणों में से जो महत्वपूर्ण कारण हैं, उनमें से एक तरफ तो बंधन इतने कम हो गये हैं और रास्ते इतने छोटे हो गये हैं, और दूसरी तरफ व्यक्तिगत आकांक्षाएँ इतनी बढ़ गई हैं कि किसी को किसी के बारे में सोचने के लिये समय ही नहीं है । इसलिये नित नये मूल्य, अपनी-अपनी सुविधानुसार बनते और बिगड़ते रहते हैं । कहीं कोई शाश्वत मूल्य दिखाई ही नहीं देते हैं । जो लोग आज भी शाश्वत मूल्यों से चिपके हुए हैं, उनकी गिनती नहीं के बराबर है । "मूल्य" के अर्थ "कीमत" से हरेक "मूल्य" की कीमत चुकाई जा सकती है । सही मायनों में आज "मूल्य" का अर्थ चरितार्थ हो रहा है ।
प्रकृति का एक नियम है। यहाँ कोई भी वस्तु नाशवान नहीं है । बस स्वरूप बदलता रहता है । जिसका उत्थान होगा, उसका पतन भी अवश्यम्भावी है । पतन की भी एक सीमा होती है, और एक बिन्दु पर, जो पतन का चरमोत्कर्ष हो, पहुँच कर, अपने-आन से घृणा होना स्वाभाविक है । फिर, कोई भी वस्तु अधिक मात्रा में अच्छी नहीं होती और नुकसान करती है । यह तो हम देख ही रहे हैं कि जहाँ हमने पाश्चात्य संस्कृति से प्रभावित हो कर पाश्चात्य मूल्यों को अंधाधुंध अपनाना शुरू कर दिया है, वहीं पश्चिम वालों ने अपने मूल्यों को खोखला पा, एक चरम सीमा तक पहुँचने के बाद, उनका बहिष्कार कर भारतीय मूल्यों की और रुख कर लिया है । इसलिये, आज की स्थिति निराशाजनक नहीं है । केवल आने वाले कल की सूचक मात्र है । चूँकि "मूल्यों" का स्वरूप बदलता रहता है, एक समय आयेगा जब प्रचलित मूल्य फिर से बदलेंगें ।